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.. प्रश्नों के उत्तर ....................१८६ मैं बता रहा था कि भूचाल आदि प्राकृतिक प्रकोप जीवो के सामूहिक वेदनीय कर्म का फल भी है। व्यक्ति स्वय कर्म का वन्व करता है और स्वय उसके फल को भोगता है। किन्तु कुछ कर्म ऐसे भी होते हैं, जो सामूहिक रूप से वाये जाते है, तो भोगने के समय भी सामूहिक रूप से उदय मे आते है । भूकम्प, अनावृष्टि-अतिवृष्टि, महामारी आदि सक्रामक रोग, वाढ आदि प्राकृतिक तूफान सामूहिक रूप से बंधे हुए कर्मों के फल हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक कर्म व्यक्तिगत या सामूहिक जिस रूप में ववा है उस रूप मे भी फल देता है। रोग-विमारी, कुरूप गरीर वेढ़ गे अगोपाग, दरिद्रता आदि सभी बुरी वस्तुए तथा स्वस्थ एव सुन्दर गरीर, व्यवस्थित अगोपाग, भरा-पूरा परिवार आदि सभी अच्छे सयोग अशुभ और शुभ कर्मो के फल हैं।
सामूहिक बंध का कारण यह तो स्पष्ट हो गया है कि वषे हुए कर्म अपना फल देते हैं। व्यक्तिगत कर्म वध की चर्चा हम विस्तार से कर चुके हैं। परन्तु सामूहिक कर्म बंध के सबध मे हमने पीछे कही चर्चा नहीं की है। और यहा सामूहिक कर्म फल का प्रसग चल पड़ा है, अत हम यहा इस पर भी जरा विचार कर ले तो अप्रासगिक नही होगा । यह हम पहले बता चुके हैं कि जो प्राकृतिक विपत्तिए आती हैं, वे उक्त प्रदेश में स्थित जीवों के अशुभ कर्मोदय का ही फल है। इसमें यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि बहुत-से जीव सामूहिक वव कैसे करते है?
इसके उत्तर मे हम दो छोटे-से उदाहरण देना उपयुक्त समझते है, जिससे सारी स्थिति साफ हो जाएगी । एक जगह वेश्या का नृत्य एवं संगीत हो रहा है, हजारो व्यक्ति उमे देख-सुन रहे हैं और उसके रूप-सौन्दर्य, नृत्य के विकारी हाव-भाव एव सगीत के माधुर्य को देख