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तृतीय अध्याय
सुन करके सव के मन मे वासना जगती है। उसका नृत्य एव सगीत वद होते ही-आवाजे कसी जाती है, सीटिया वजाई जाती है, इत्यादि अनेक तरह से विकृत भावो को व्यक्त किया जाता है।
किसी प्रात मे साप्रदायिक दगे होते हैं, एक-दूसरे राष्ट्र मे युद्ध चलता है, उस समय अखबारो, रेडियो आदि साधनो से उसके समाचारो को जान कर मन मे उनके प्रति द्वेप एवं घृणा के भाव आते हैं, तथा उस हिंसक दुष्कर्मो की प्रशसा करने वाले भी मिल जाते है।
. इस तरह के प्रसग सामूहिक रूप से पाप कर्म बध के कारण बनते है। और इसी तरह किसी महापुरुष के सत्कार्य की सामूहिक रूप से प्रगसा करने तथा उसके द्वारा बताए गए सम्यक् मार्ग पर सामूहिक रूप से गति करने से सामूहिक रूप से पुण्य कर्म का बध होता है। जिसके परिणाम स्वरूप मे परिवार, समाज एव राष्ट्र मे जहा भी उक्त सदात्माए: रहती है, वहा सदा सुख-शान्ति का सागर ठाठे मारता रहता है। - - : . .. इतनी लम्बी विचारणा के बाद हम इस निर्णय पर पहुचे कि आत्मा के द्वारा किए गए शुभाशुभ कर्म आत्मा को मिलने वाले अच्छे एव बुरे सयोगो के रूप मे मिलते हैं। दुनिया मे मिलने वाले अच्छे एव बुरे सभी सयोग कर्म के फल हे और इसी कारण एक ही माता से उत्पन्न दो भाईयो के रहन-सहन एव दुख-सुख का भोग करने मे भिन्नता नजर आती है। यह भिन्नता दोनो आत्माओ के अपने किए हुए कर्मो का ही फल है। ..
. बंध और विपाक की प्रक्रिया ___ जैनागमो मे वध चार प्रकार का माना है- १ प्रकृति वंध, २ प्रदेश वध, ३ अनुभाग बंध और ४ स्थिति बंध । लोक मे ऐसा कोई