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तृतीय अध्याय
कर्म स्वयं फल प्रदाचा है
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प्रश्न- कर्म जड़ है | उसे अपने शुभाशुभ होने का कोई बोध नहीं है । और कर्म का कर्त्ता फल भोगना नहीं चाहता है । ऐसी स्थिति में जड़ कर्म उसे शुभाशुभ फल कैसे देंगे ? '
उत्तर - यह ठीक है कि कर्म जड़ हैं, परन्तु वह चेतन के साथ- सवद्ध होने के कारण उसमे भी यथासमय फल देने की शक्ति पैदा हो जाती है । जड पुद्गलो का भी यह स्वभाव है कि वे जिस रूप मे सघटित होते हैं या किए जाते हैं, उसी के अनुसार अपना असर भी दिखाते हैं । कुछ वम्व ऐसे होते हैं कि जिनमे विस्फोटक पदार्थ भरते समय उनके फटने का समय अकित कर दिया जाता है और परिणाम स्वरूप वह ara विना चलाए एवं विना किसी चीज से टक्कराए ही यथासमय फट जाता है । तो पुद्गलों को भले ही समय एवं शुभाशुभ का ज्ञान नही है, परन्तु जिस रूप मे उनका संग्रह हुआ है, उस रूप मे उनकी परिगति होती है । उसके लिए किसी ईश्वर को इधर-उधर भाग-दौड़ - करने की आवश्यकता नही है ।
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हम जानते है कि विष निर्जीव है, उसे किसी व्यक्ति को मारने का भी ज्ञान नही है । फिर भी मनुष्य के न चाहने पर भी विष का प्रभाव पड़े बिना नही रहता है । जो व्यक्ति विष खाने के बाद मरना नही चाहता है, फिर भी विष का असर होते. ही मनुष्य मरणासन्न हो जाता है और वह वचने के लिए चिल्लाता है । वैद्य डाक्टर विष को निकालने का प्रयत्न करते हैं । यदि विष खून मे मिल गया है और उस . के निकालने के प्रयत्न - सफल नही हुए हैं, तो वह व्यक्ति सदा के लिए मृत्यु की गोद मे सो जाता है । जब विष भी अपना प्रभाव दिखाए विना