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तृतीय अध्याय
सवध मे भी समझनी चाहिए। जब वे सामूहिक रूप से प्रवहमान होते हैं, तो प्रकृति के शान्त वातावरण मे हल-चल मचा देते हैं, तूफान सा ला देते हैं।
मनोवैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि मनुप्य के मन मे अच्छे-बुरे जैसे भी विचार बनते है,उसके अनुरूप परमाणुप्रो मे कालापन या उज्ज्वलता तथा कटुता या मधुरता आती है। * और उन भावनाओं से अनुरंजित परमाणु जव व्यक्ति के शरीर से निकलकर वाहर आते हैं तो वाहर के परमाणुगो को भी प्रभावित किए बिना नहीं रहते । वे शुभाशुभ एव विशुद्ध भावो से रगे हुए परमाणु अन्य परमाणुओ के साथ मिलकर प्रकृति के वातावरण मे परिवर्तन ले आते है। जिसे वैज्ञानिको की भाषा मे रासायनिक परिवर्तन कहते है। रासायनिक परिवर्तन भी क्या है? परमाणुनो का मिलना एव अलग होना ही रासायनिक परिवर्तन है। जव हाईड्रोजन और आक्सीजन दो गैसो के परमाणु अपने-अपने स्कन्ध मे से अलग होकर आपस मे मिल या मिला दिए जाते हैं, तो उनमे परिवर्तन आ जाता है, वे अपने स्वरूप को छोडकर पानी के रूप मे परिलक्षित होने लगते हैं। तो परमाणुप्रो मे यह रासायनिक परिवर्तन स्कन्ध के सघटन-विघटन के कारण ही होता है । अत चाहे वैज्ञानिक के शब्दो मे कहूं, मनोवैज्ञानिक की दृष्टि से कहू या एक सैद्धान्तिक की भाषा मे कहू- 'वात एक ही है कि आत्मा के शुभाशुभ भावो से अनुरजित परमाणुओ का वाहर के परमाणुओ पर भी असर होता है और उस से प्रकृति मे अच्छा या बुरा परिवर्तन आता है। __ * जिसे-जैन परिभाषा मे लेश्या कहते है । लेश्या के वर्ण, गध, रस, स्पर्श आदि शुभाशुभ परिणामो-विचारो के अनुसार अच्छे-बुरे होते हैं ।