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तृतीय ग्रध्याय
कार्मण वधन नाम कर्म, १३ तैजस- तैजस बघन नाम कर्म, १४ तैजसकार्मण बधन नाम कर्म और १५ कार्मण-कार्मण वधन नाम कर्म । इस तरह वधन नाम कर्म के दस-भेद वढा देने से नाम कर्म के ९३+१० = १०३ भेद हो जाते है ।
६७ भेद- ववन नाम कर्म के १५ भेद और सघातन नाम कर्म के ५ भेदो का ५ गरीर नाम कर्म मे समावेश कर दे । और वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के २० भेदो को वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श इन चार मे समाविष्ट कर देते है, तो शेष ६७ प्रकृतिया ही वचती है । वधन नाम के १५, सघातन नाम के ५ और वर्णादि की १६ इस तरह कुल ३६ प्रकृतियां १०३ - ३६ = कम करने से, नाम कर्म को शेष ६७ प्रकृतिया रहती है । इस अपेक्षा से नाम कर्म की ४२, ९३, १०३ और ६७ प्रकृतिया होती है । -
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गोत्र कर्म,
इसे कुभकार के समान माना है । जैसे कुभकार अनेक तरह के घट बनाता है, जिनमे से कुछ घट कलग के है. या घी, पानी आदि शुभ पदार्थ रखने के काम मे घट मदिरा आदि अशुभ पदार्थ भरने के काम मे भी लाए जाते हैं । उसी तरह इस नाम कर्म के उदय से जीव कभी उच्च गोत्र मे जन्म लेता है, तो कभी नीच गोत्र मे भी जन्म ग्रहण करता है । ऊच और नीचे के भेद से गोत्र कर्म दो प्रकार का माना गया है ।
अंतराय कर्म
रूप मे पूजे जाते आते हैं, तो कुछ
यह - कर्म – भण्डारी –— कोषाध्यक्ष के समान कहा गया,
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है । कोषाध्यक्ष के अनुकूल न होने पर राजा अपनी इच्छानुसार धन
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का व्यय नहीं कर सकता । उसी तरह इस कर्म के उदय से शक्तिये
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