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बन्ध-मोक्ष मीमांसा
तृतीय अध्याय
प्रश्न- जगत् जीव और अजीव या जड़ और चेतन पर आधारित है, यह तो समझ में आ गया । परन्तु यह आत्मा संसार में क्यों परिभ्रमण करती है. जड़ पुद्गलों का इसके साथ कैसे संबंध होता है ? वह संबंध सदा बना रहता है या उसका अन्त भी किया जा सकता है ? यदि किया जा सकता है तो किस तरह किया जा सकता है ? इसे स्पष्ट रूप से समझाएं ? उत्तर- जैनागमो में यह बताया गया है कि कर्म बन्ध के कारण आत्मा ससार मे परिभ्रमण करता है । कषाय युक्त योगो की प्रवृति से कर्म पुद्गल आत्मा के साथ सबद्ध होते हैं। आत्मा और कर्मों का सवध अनादि काल से है। परन्तु यह सदा के लिए वना रहेगा, ऐसी वात नही है । क्योकि अनादि कालीन सबध प्रवाह रूप से है । व्यक्तिश कर्म पुद्गलों मे प्रति समय परिवर्तन होता रहता है। पुराने कर्म अपना फल देकर नष्ट हो जाते हैं और नए कर्मो का बन्ध होता रहता है । अत आत्म साधना के द्वारा कर्मो का आत्यान्तिक क्षय भी किया जा सकता हैं।
कर्म पुद्गलो के आगमन की प्रक्रिया को प्राश्रव कहते हैं।