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द्वितीय अध्याय रूप सदा बना रहता है। अतः परमाणु को.पुद्गल का शुद्ध रूप माना गया है।
काल द्रव्य जैनागमो मे काल का लक्षण वर्तना बताया गया है । तत्त्वार्थ सूत्र मे वर्तना, परिणाम, क्रिया और परत्व-अपरत्व ये काल के उपकार बताए गए हैं। * अपने-अपने पर्याय की उत्पत्ति मे स्वयमेव प्रवर्त्तमान द्रव्यो को निमित्त रूप से प्रेरणा करना वर्तना है । स्व स्वरूप का परित्याग किए विना द्रव्य की पर्यायो मे होने वाला परिवर्तन या पर्यायो को पूर्वावस्था की निवृत्ति और उत्तरावस्था की उत्पत्ति को परिणाम कहते हैं। पर्यायो मे जो स्पन्द होता है उसे गति कहते है। ज्येष्ठत्व यह परत्व है और कनिष्ठत्व अपरत्व है। यद्यपि वर्तना आदि कार्य यथासभव धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यो के ही है, तथापि काल सब का निमित्त कारण होने से यहा उन्हे काल का कार्य माना गया है। ___काल सभी पदार्थो पर वर्तता है। अभिनव पदार्थ को- पुरातन बनाता है और पुरातन को समाप्त करता है। यहा समाप्त करने का अर्थ पुद्गल के वर्तमान रूप से है, न कि द्रव्य रूप से । क्योकि द्रव्य सदा स्थित रहता है, नए से पुराना एव समाप्त होने का कार्य पर्यायो का है। पर्याये एक रूप से समाप्त होकर दूसरे रूप को धारण करती रहती हैं और उसमे काल निमित्त रूप से कारण होता है।
काल दो तरह का माना गया है- १ निश्चय कोल और २ व्यवहार काल । लोकाकाश पर स्थित जो असख्यात कालाणु (काल द्रव्य) है,उन्हें निश्चय काल कहते हैं । इन के निमित्त से वस्तु मे परिवर्तन
* तत्त्वार्थ सूत्र, ५, २२॥ में तत्त्वार्थ सूत्र (प. सुखलाल'सधवी) पृ. २०५.