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प्रश्नो के उत्तर
१४० उपरोक्त कार्य पुद्गल के असाधारण कार्य हैं। अर्थात् ये शुद्ध पौद्गलिक होते है । कुछ कार्य ऐसे है, जो जीव और पुदगल के संबंध से होते हैं । शरीर, वाणी, मन, नि.श्वास-उच्छ्वास, सुख-दुख, जीवनमरण आदि कार्य उभय द्रव्यो के सबध से निष्पन्न होते है।
स्कन्ध की अपेक्षा से पुद्गल विभिन्न आकार • प्रकार में परिलक्षित होता है। परन्तु, उसका शुद्ध रूप परमाणु है । भौतिक-वैज्ञानिको ने पहले ९२ मौलिक तत्त्वो (Elements)की खोज की थी । उनका वजन और गक्ति के अग भी निर्धारित किए थे । मौलिक तत्व का अर्थ होताहै-एक तत्त्व का दूसरे रूप को प्राप्त न करना। इस परिभाषा के अनुसार अव वर्तमान वैनानिक कोप मे केवल एटम (Atom) ही मौलिक तत्त्व के रुप मे अवशेप रहा है । यही एटम अपने आस-पास चारो तरफ गतिशील इलेक्ट्रोन और प्रोटोन को सख्या के भेद से आक्सीजन, हाईड्रोजन, चादी; स्वर्ण, लोहा, तावा, यूरेनियम, रेडियम आदि अवस्थामो को धारण कर लेता है । आक्सीजन के अमुक इलेक्ट्रोन या प्रोट्रोन को तोड़ने या मिलाने पर वही हाइड्रोजन बन जाता है। इस तरह आक्सीजन और हाइड्रोजन दो मौलिक तत्त्व न होकर एक तत्त्व की अवस्था विशेष ही मालूम होते है। वह मूल - तत्त्व केवल अणु (Atom) है। * जैन दर्शन भी इसी सिद्धात को मानता है। अलग-अलग दिखाई पड़ने वाले स्कन्व विभिन्न तत्त्व नही है । भेद और सघात से या वैज्ञानिक भापा मे यों कहिए कि रासायनिक परिवर्तनो के कारण एक स्कन्ध मे से अमुक प्रकार के परमाणु के विखरनेअलग होने और मिलने से वह दूसरे स्कन्ध के रूप मे वदल जाता है। परन्तु सभी स्कन्धो मे स्थित परमाणु का नाश नही होता, उसका शुद्ध
* जैनदर्शन (प महेन्द्र कुमार, न्यायाचार्य) पृ.१८२.