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प्रश्नों के उत्तर
rrammarrrrrrram को लेकर दार्शनिको मे काफी मनभेद रहा है। फिर भी इतना तो मानना होगा कि कुछ विचारक मन को अभौतिक मानते थे । न्यायवैशेषिक दर्शन मे मन को अणु मानते हुए भी उसे पृथ्वी आदि भूतो के अणु से विलक्षण माना है । साख्य दर्शन ने ऐसा माना है कि जीवन मे भूतो की निप्पति होने से पहले ही प्राकृतिक अंहकार मे से मन का उद्भव हो जाता है, इस से भूतों की अपेक्षा मन की मूढमता का सवेत मिल ही जाता है । वैभाषिक बौद्धो ने तो मन को विज्ञान का समनन्तर कारण स्वीकार किया है । तैत्तरीय उपनिपद् मे "अन्योन्तरात्मा मनोमय.” इस वाक्य से मन को आत्मा माना है। बृहदारण्यक* एव छान्दोग्य उपनिषद् मे मन को परम ब्रह्म सम्राट और ब्रह्म कहा है।
इस तरह कुछ विचारक मन को अभौतिक तत्त्व के रूप मे स्वीकारते थे । जैनो ने इन्द्रियो की तरह मन को भी प्राण माना है और १० प्राणो मे उसका भी समावेश किया गया है।। और उसे सव से सूक्ष्म माना है फिर भी उसे भौतिक ही माना है। क्यो कि अन्य इन्द्रियो की तरह उसका निर्माण भो. परमाणु के समूह रूप स्कधो से होता है।
* न्याय सूत्र, ३, २. ११; वैशेषिक सूत्र, ७, १,२३ । ६ पण्णामनन्तरातीन विज्ञानं यद्धि तन्मन ।
- -अभिधर्मकोष, १, १७ . * वृहदा० ४, १,६। ६ छांदो० ७,३,१।
। श्रुत इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, रसना इन्द्रिय, मन, वचन, काया, श्वासोच्छवास और आयुष्य बल प्राण ।