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प्रश्नों के उत्तर
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दिया गया और वह एक अभिनव स्कन्ध बन जाता है। इस प्रक्रिया मे निर्मित स्कन्ध को भेद और सघात उभयपूर्वक मानते है । इस प्रकार तीन तरह से स्कन्ध का निर्माण होता है। कभी केवल भेद से, कभी केवल सघात से और कभी भेद और सघात से।
दो या दो से अधिक पृथक-पृथक रहे हुए परमाणुयो का सघातसरलेप या वन्ध कैसे होता है? जैन दार्गनिको ने इसका उत्तर देते हुए कहा है कि परमाणुयो मे जो संश्लेप होता है-वह उन मे रहे हुए स्निग्ध और रुक्ष स्पर्श के कारण होता है । * वन्ध मे इन वातो का होना जरूरी है
१ जघन्य गुण युक्त अवयवो का वन्ध नही होता है ।
२ समान गुण होने पर भी सदन अवयवों का अर्थात् स्निग्ध से । स्निग्ध या ल्क्ष से रुक्ष अवयवो का वन्व नही होता है ।
३ दो से अधिक गुण वाले अवयवो का बन्ध होता है।
इस से यह स्पष्ट हो गया है कि परमाणुओ मे स्निग्वत्व या रूक्षत्व का अश या गुण जघन्य होने पर उनमे वन्य नहीं होता, मध्यम या उत्कृष्ट गुण होने पर ही उनका वन्व होता है । दूसरे निषेध का तात्पर्य यह है कि समान गुण युक्त सदृश अवयवो मे परस्पर वन्च नही होता है। जैसे स्निग्ध से स्निग्ध या रुक्ष से रुक्ष अवयवो का बन्ध नही होता है। इसे और सीमित करते हुए कहा गया है कि असमान गुण वाले सदृश अवयवो में भी तभी वन्ध होता है,जव एक अवयव का स्निग्वत्व या रूक्षत्व गुण दूसरे अवयव से दो गुण अधिक हो । इससे यह
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* स्निग्धरुक्षत्वाद् बन्ध । -तत्त्वार्थ सूत्र, ५, ३३. 5 न जघन्य गुणानाम् । गुणसाम्ये सदृशानाम । -- द्वयधिकादिगणान्तु ।
___-तत्त्वार्य सूत्र, ५, ३४-३६