________________
१३१.
द्वितीय ग्रध्याय
सव परमाणुओ को एक जाति का मानता है । वह जाति - भूत सामान्य या जड सामान्य है । यही बात जैन दर्शन मानता है । समस्त परमाणु जड- अजीव है और परिणामी नित्य हैं ।
स्कन्ध की उत्पत्ति
यह हम ऊपर वता चुके हैं कि पुद्गल चार प्रकार का होता हैस्कन्ध, स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणु । सभी स्कन्ध परमाणु के समूह है। उनका निर्माण तीन तरह से होता है - भेदपूर्वक, सघात - सरलेप पूर्वक और भेद-सघातपूर्वक । *
AAAAA AAMANA
भेद दो तरह से होता है - श्राभ्यान्तर और बाह्य । स्कन्ध मे स्वय विदारण होता है । अत आन्तरिक कारण से स्कन्ध मे से जो परमाणु अलग होते हैं, उसमे किसी बाहरी कारण - की अपेक्षा नही होती । जैसे मन स्कन्ध के परमाणु विना बाहरी ग्राघात के ही स्कन्ध से अलग हो जाते है, उन्हें स्कन्ध से पृथक होने के लिए बाहरी भेद की जरूरत नही होती । परन्तु बाहरी कारण से होने वाले भेद में स्कन्ध के अतिरिक्त दूसरे कारण की अपेक्षा होती है । उस कारण के होने पर स्कन्ध मे उत्पन्न होने वाले भेद को वाह्य कारण मानते है ।
अलग-अलग रहे हुए परमाणु का एकीभाव होना सघात है । यह भी ग्राभ्यान्तर और वाह्य भेद से दो प्रकार का होता है । दो पृथक-पृथक परमाणुओ का मिलन या दो से अधिक परमाणु का सयोग सघात कहलाता है ।
भेद और मंघात उभयपूर्वक वनने वाला स्कन्ध भेद-सघात कहलाता है । उदाहरण के तौर पर एक स्कन्ध मे से एक हिस्सा टूट कर अलग हुआ और उसी समय दूसरा स्कन्ध आकर उसमे मिल गया या मिला
AMA
AN
1 भेदसघातेभ्य उत्पद्यन्ते ।
- तत्त्वार्थ सूत्र ५, २६.
A
WA