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द्वितीय अध्याय
स्पष्ट हो गया है कि एक अवयव के स्निग्धत्व या रूक्षत्व की अपेक्षा दूसरे श्रवयव का स्निग्धत्व या रूक्षत्व एक गुण अधिक हो तो भी उन का वन्ध नही होता, दो गुण अधिक होने पर ही बन्ध होता है | S
बन्ध की मान्यता मे दो परपराए हमारे सामने है । वेताम्बर और दिगम्बर । श्वेताम्बर परपरा की यह मान्यता है कि दो परमाणु जघन्य गुण वाले हो तो उनका बन्ध नही होता है। किन्तु एक परमाणु जघन्य गुण युक्त हो और दूसरा मध्यम या उत्कृष्ट गुण युक्त हो तो दोनो मे बन्ध हो जाता है । परन्तु दिगम्बर परपरा मे यदि दो परमाणुनों मे से एक परमाणु भी जघन्य गुणवाला है, तो उनमे बन्ध नही होता हैं। परन्तु श्वेताम्बर सिद्धात के अनुसार एक परमाणु से दूसरे परमाणु मे स्निग्धत्व या रूक्षत्व दो, तीन, चार यावत् सख्यात, असख्यात, अनन्त गुण अधिक होने पर भी वन्ध हो जाता है, एक गुण अधिक का वन्ध नही होता । जबकि दिगम्बर मान्यतानुसार एक अवयव से दूसरे अवयव मे स्निग्धत्व या रूक्षत्व दो गुण अधिक होने पर ही बन्ध होता है, न कि एक गुण अधिक होने पर वन्ध होता है और न तीन, चार यावत् अनन्त गुण अधिक होने पर वन्ध होता है । श्वेताम्बर परपरा की धारणा के अनुसार दो, तीन आदि गुणो के अधिक होने पर जी वन्ध का विधान है, वह सदृग अवयवो के लिए है, असदृग अवयवो के लिए नहीं । § वव परिणामे ण भते । कइविहे पन्नते ? गोयमा ! दुविहे पन्नते, तजहा - गिद्ध वधण परिणामे, लुक्खववण परिणामे ।
समलुक्खाए वि ण होइ ।
खघाण
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समणिद्धाए वो ण होइ माणिक्खतणेण वघो गिद्धस्स णिद्वेण दुर्यााहिए ण, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिए ण । णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ वधो, जहण्णवज्जो
विसमो समो वा ।
- प्रज्ञापना सूत्र, पद १३
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