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प्रश्नो के उत्तर
PANAM AMA
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दृष्टि से उसमे परिवर्तन होता है, कुछ परमाणुयो के सयोग-वियोग से नई पर्याय (रूप) का प्रदुर्भाव होता है और पुरातन पर्यायों का विनाश होता है, परन्तु परमाणु रूप द्रव्य का अस्तित्व सदा वना रहता है । जैसे ग्राक्सीजनचौर हाइड्रोजन दो गैसो के परमाणुओं का सयोग उभय निप्ठ गैस रूप पर्यायों का विनाग और जल कायिक शरीर की पयार्यो का उत्पादक है | इस प्रक्रिया से गैस रूप का नाश होकर पानी का उत्पाद होता है और दोनो रूपो मे परमाणु रूप का नाश नही होता है । अथवा यो कहिए प्रत्येक पदार्थं पर्यायों की दृष्टि से उत्पाद व्यय युक्त होने पर भी परमाणु द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है, नित्य है ।
धर्म, धर्म, आकाश और पुद्गल इन चार द्रव्यो मे धर्म और धर्म द्रव्य को जैनो ने ही माना है । जैनेतर दर्शनों मे उनका वर्णन नही मिलता है । आकाश और पुद्गल को ग्रन्य दार्शनिको ने भी माना है । जैनदर्शन प्रकाश को द्रव्य रूप में मानता है, अन्य दार्शनिको ने उसे मात्र ग्राकाश कहा है और उसके स्वरूप मान्यता मे भी भेद है। पुद्गल शब्द जैनो का पारिभाषिक शब्द है, अन्यत्र नही मिलता है । इतर दर्जनो मे यह प्रकृति, माया एव परमाणु के नाम से व्यवहृत है । वौद्ध ग्रन्थो से पुद्गल गन्द मिलता है । वहा उसका प्रयोग अजीव के अर्थ मे नही, बल्कि जीव के अर्थ मे हुआ है ।
पदार्थो का रूप परिवर्तन या उत्पन्न एवं विनष्ट होना, यह पुद्गल का स्वभाव है । मोटे तौर पर हम जिन पदार्थो का आस्वादन करते है, स्पर्ग करते हैं, अवलोकन करते है, श्रवण करते है और सूघते हैं, वे सभी पदार्थ पुद्गल हैं । ऋत. जैनदर्शन मे पुद्गल का स्वरूप वर्ण, गंध, रस एव स्पर्ग युक्त साकार माना गया है । यहा तक की प्रति सूक्ष्म माना जाने वाला परमाणु भी साकार है, वर्णादि से युक्त है । आधु