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द्वितीय अध्याय
व्यय रूप परिणमनशील नित्य - शाश्वत पदार्थ है । वह प्रकृत्रिम और अनादि-अनन्त है । क्षेत्र की दृष्टि से लोकाकाश सान्त है और अलोकाकाश अनन्त है । क्योकि अलोक आकाश का कही अन्त नही है |
पुद्गल द्रव्य
वर्ण, गध, रस और स्पर्श युक्त सभी मूर्त पदार्थ पुद्गल हैं । $ पूद् श्रीरंगल इन दो धातुत्रों के सयोग से पुद्गल शब्द वना है । पूद् का अथ होता है पूरण अर्थात वृद्धि और गल् का अर्थ है - गलना, ह्रास होना । इस तरह जो पदार्थ पूरण और गलन या मिलने और विछुडने के कारण विविध रूपो मे परिवर्तित होता रहता है, उसे पुद्गल कहते हैं । ससार के सभी मूर्त पदार्थो मे यह स्वभाव परिलक्षित होता है । यह हम सदा देखते है, अनुभव करते हैं कि हमारे अपने शरीर मे एक दुनिया के अन्य पदार्थो मे प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है । परमाणुओ का संयोग वियोग हर मूर्त पदार्थ मे होता है । दूसरे शब्दो मे हम यो कह सकते हैं कि अनन्त परमाणुओ का समूह ही मूर्त पदार्थ के रूप मे इन्द्रिय गोचर होता है, उसमे से अनेक पुराने परमाणु अलग होते है और अनेक नए परमाणु आकर सम्मलित होते है । इस तरह एक परमाणु दूसरे परमाणु के साथ मिलता और विछुडता रहता है । इस प्रकार परमाणु मे भी पुद्गल सजा अर्ययुक्त है । क्योकि पुद्गल का मूल रूप परमाणु ही है । परमाणुत्रो का समूह स्कन्ध कहलाता है । पर्यायो को
$ स्पर्शरसगधवर्णवन्तः पुद्गला ।
S पूरणगलनान्वर्थं सचत्वात् पुद्गला ।
-तत्त्वार्थ
सूत्र, ५, २३.
- तत्त्वार्थ राजवार्तिक ५, १,२४०