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प्रश्नों के उत्तर
का कुछ पुट देकर वैदिक दर्शन का रूप दे दिया। यह एक ऐ हासिक तथ्य है औ सभी इतिहासवेता इस बात से भली-भाति परिचित है।
वेदान्त में विभिन्न विचार भेद .. शंकराचार्य का मायावाद .
आचार्यगकर का मानना है कि वास्तव मे ब्रह्म एक ही है, ससार में और कोई मूल तत्त्व नही है। एक ब्रह्म होते हुए जो अनेक जोवात्मा दिखाई देती है, वह अज्ञान एव माया के कारण परिलक्षित होती है। जैसे रज्जू मे सर्प का ज्ञान भ्रम से होता है, उसी तरह अनेक जीवो का जो भान होता है, वह भी भ्रम है। जवकि रज्जू सर्प नही, न सर्प रूप से उत्पन्न ही हो सकती है और न वह-सर्प को उत्पन्न हो करती है. फिर भी उसमे सर्प का भ्रम होता है । इसी तरह ब्रह्म न तो अनेक . जीव रूप से उत्पन्न होता है और न अनेक जोवो को उत्पन्न करता है, फिर भी संसार मे अनेक जीव दृष्टिगोचर होते है, यह अविद्या है, माया है। इस प्रकार अनेक जीव मायिक है, मिथ्या हे । इसी कारण उन्हे बह्य का विवर्त कहते हैं। जव तक अज्ञान है,तव तक अनेक जीव दिखाई देते है। अज्ञान का पर्दा फटते ही जीव ब्रह्म स्वरूप मे मिल जाता है, फिर द्वैत नहीं रह जाता। इस तरह प्राचार्य शकर के मत को 'केवलाद्वैतवाद' कहते हैं। क्योकि यह केवल ब्रह्म को ही सत्य मानता है,और किसी को नही । आचार्य गकर की दृष्टि से सारा संसार मिथ्या है, भ्रम है, माया है । 'ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या यह इनकी मान्यता है। इसलिए इन के मत को मायावाद भी कहते हैं। - - - - -
mmmmmmmmmmmmmmmmmm. ६एको ब्रह्मा द्वितीयो नास्ति।