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प्रश्नों के उत्तर
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चैतन्य है । फिर भी कुछ लोगो को पृथ्वी आदि में जीवत्व है, इस पर विश्वास नहीं होता । उन लोगो का कहना है कि हीन्द्रिय यदि जीवो की चेतनता व्यक्त है, स्पष्ट है । क्योंकि उन्हें मुख-दुःख की अनुभूति होती है । परन्तु हमे पृथ्व्यादि एकेन्द्रिय जीवों में मुख-दुखादि की अनुभूति होती हुई स्पष्ट नजर नही ग्राती है, उन जीवो की चेतना व्यक्त रूप से परिलक्षित नही होती है । ऋत उनमे जीव है, यह कैसे माना जाए ?
किसी प्राणी - जीव में अभिव्यक्ति होती है और किसी मे स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति नही होती हैं । परन्तु इतने मात्र से हम उनमे जीवत्व से इन्कार नहीं कर सकते। क्योंकि एक ऐसा व्यक्ति जिस के ग्राख नही है, कान और नाक मे सुनने-सूघने को तथा जवान मे बोलने की शक्ति नही है और उस के हाथ-पैर भी नही है या कट गए हैं, वह व्यक्ति न गति कर सकता है, न कोई हरकत कर सकता है और न बोल कर अपने विचारो को अभिव्यक्त भी कर सकता है, ऐसी स्थिति में हम उसे सजीव कहेंगे या निर्जीव ? उत्तर स्पष्ट है- सजीव । अभिव्यक्ति न होते हुए भी वह व्यक्ति सजीव है, तो क्या कारण है कि पृथ्यादि जीवो मे सजीवता को न माना जाए ? केवल चेतना को अभिव्यक्ति न होने मात्र से हम किसी भो जीव को निर्जीव नहीं कह सकते हैं ।
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पानी और वनस्पति को सजोवता तो वैज्ञानिकों ने भी मान लो है | विज्ञान वेताश्रो ने अपने प्रयोगो से प्रमाणित कर दिया है कि पानी की एक नन्ही सी वूद मे अनेकों, अनगिणत जीव है । वनस्पति पर काफी प्रयोग हो चुके है । मनुष्य एव पशु-पक्षियों की तरह उसे भी रोग के कीटाणु ा घेरते है । और वनस्पति चिकित्सक उसे श्रपवों के द्वारा पुन. स्वस्थ करने या स्वस्थ रखने का प्रयत्न करते हैं । दूसरे मे पानी एवं खाद के मिलने पर घास-फ्रूम एवं पोवो में अभिवृद्धि भो होती है । गौतम स्वामी के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए - "वनस्पति