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-AVaru
प्रग्नों के उत्तर ............... के प्रदेश वन मे नन्तु की तरह पतिबद्ध है, एक परमाणु जितने आकाग को रोकता है उसे प्रदेश कहते हैं। उस नाम के अनुमार प्राकाश अनन्त प्रदेश वाला है !
लोकाकाग में सूर्योदय की अपेक्षा में पूर्व-पश्चिम आदि दिगानी की गणना होती है। परन्तु दिशा-विदिशा कोई स्वतत्र द्रन्य नहीं है । यदि पूर्व-पश्चिम आदि के व्यवहत होने के कारण दिशा को भी स्वतन द्रव्य मान लें, तो फिर दिशा को अपेक्षा से क्षणिण देग,उत्तर देश आदि का व्यवहार होने से देश को भी स्वतंत्र द्रव्य मानना होगा और फिर प्रान्त, गाव,जिला, तहसौल आदि अनेको स्वतंत्र द्रव्यों को स्वीकार करना होगा। अतः किसी अपेक्षा विशेष के कारण व्यवहार होने मात्र से दिगानो को स्वतत्र द्रव्य नही माना जा सकता है। उनका कोई स्वतत्र अस्तित्व नहीं है। क्योंकि ढाई द्वीप के बाहर जहां सूर्यादि गतिशील नही है तथा अलोक मे जहा मूर्यादि का अभाव है, वहा दिशा-विदिशात्रो का व्यवहार ही नहीं होता। यदि प्राकाम की तरह दिशा भी स्वतत्र द्रव्य होती तो ढाई द्वीप के बाहर एवं अलोक में जनका व्यवहार होता । परन्तु वहा दिशा-विदिशा का व्यवहार नहीं होता है, अत दिशा को स्वतंत्र द्रव्य मानना युक्ति सगत नहीं है।
वैशेपिक आदि दार्गनिक शब्द को आकाश का गुण मानते हैं। . परन्तु यह युक्ति संगत नहीं है। आज के विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि शब्द आकाश का गुण नहीं है। रेडियो, ग्रामोफोन आदि अनेक यंत्रो से शब्द को ब्रहण करके उसे इप्ट स्थान पर भेजा जाता है तथा जब चाहे तव सुना जा सकता है। इन वैज्ञानिक प्रयोगों से यह स्पप्ट सिद्ध हो गया है कि शब्द आकाश का गुण नहीं, पुदग्ल है । शब्द पुदग्ल के द्वारा स्वीकार किया जाता है, पुदगल ही