________________
११३.wwwm
द्वितीय अध्याय
__ -से दिखाई नही देती है, फिर भी विचारको ने उसे साकार रूप में ... स्वीकार किया है । क्योकि ध्राण इन्द्रिय - नासिका से उसके
अस्तित्व एव साकारता का पता लगता है । इसी तरह स्पर्श इन्द्रिय के द्वारा वायु-हवा का भी प्रत्यक्षीकरण होता है। अत. उसे अदृश्य कहना या मानना गलत है, मिथ्या है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि वायु दृश्यमान और सजीव है।
स्थावर के बाद त्रस आते हैं । त्रस के चार भेद हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । द्वीन्द्रिय मे वे प्राणी हैं,जिनके शरीर
और जिव्हा ये दो इन्द्रियो हैं । सीप, लट आदि जन्तु इस में लिए जाते हैं। जिन जीवो के शरीर, जिव्हा और घ्राण इन्द्रिय-नाक है, उन्हे त्रीन्द्रिय कहा जाता है । कीड़े-मकोड़े, खटमल, जू आदि जन्तु'त्रीन्द्रिय मे -गिने. जाते हैं । शरीर, जिव्हा, नाक और आंख इन चार इन्द्रियो से युक्त प्राणी को चतुरिन्द्रिय कहते हैं। मक्खी-मच्छर, बिच्छू,टीड, पतगा आदि जन्तु इसमे समाविष्ट किए गए हैं। जो प्राणी शरीर, जिव्हा, नाक, कान, और प्राख पाचो इन्द्रियो से युक्त होते हैं, उन्हे पञ्चेन्द्रिय कहते हैं । पञ्चेन्द्रिय के दो भेद होते हैं - १ सन्नी पञ्चेन्द्रिय और २ असन्नी पञ्चेन्द्रिय । सन्नी पञ्चेन्द्रिय के चार भेद है-१ नरक, २ तिर्यच, ३ मनुष्य और ४ देवता । नरक सात हैं - १ रत्न प्रभा, २ शर्करा प्रभा, ३ वालु प्रभा ४ पक प्रभा ५ धम प्रभा ६ तम प्रभा और ७ तमतमा प्रभा। तिर्यंच के पांच भेद है१ जलचर- जल मे विचरण करने वाले मत्स्य, मेढक, मगरमच्छ आदि। २ थलचर- जमीन पर चलने वाले घोडा, गधा, गाय भैस, कुत्ता, सिह, आदि । ३ खेचर- आकाश में उड़ने वाले हंस,
। नरक और स्वर्ग पर 'लोक स्वरूप ' अध्याय में प्रकाश डालेंगे।