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२५....... प्रथम अध्याय
मरणान्तर तथागत नही है? मरणान्तर तथागत है और नही है?
मरणान्तर न तथागत है, न नही है? बुद्ध ने इन चारो पक्षो को अव्याकृत कहकर टाल दिया। सजयवेलट्टिपुत्त भी इस प्रकार के चार पक्ष युक्त प्रश्नो का उत्तर नहा की भाषा मे देता है और न 'नकार' की भाषा में।
इससे हम इस निर्णय पर पहुचे कि एक ही वस्तु मे अनेक धर्मो का होना अनुभव गम्य है । भगवान् महावीर संजयवेलद्विपुत्त की तरह सशयवादी नहीं है और न वे बुद्ध की तरह सकुचित दायरे मे ही आवद्ध है। वे प्रत्येक प्रश्न का निश्चयात्मक (सन्देहरहित)भाषा में उत्तर देते हैं। उनका उत्तर एकान्तवाद की भाषा मे नही,अनेकान्तवाद की भाषा मे होता है । वे प्रत्येक वस्तु का अपेक्षा से विश्लेषण करते हैं, जिस के सात विकल्प वनते हैं, उसे सप्तभगी कहते है। सप्तभगी का विस्तृत वर्णन भगवती सूत्र में देखा जा सकता है। जैन दार्शनिको ने भो आगम की सप्तभगी को स्वीकार किया है। उसी को आधार मानकर उन्होने तत्त्व का विश्लेषण किया है। सात भग निम्न हैं
१-स्यात् अस्ति, २-स्यात् नास्ति, ३-स्यात् अस्ति नास्ति, ४स्यात् अवक्तव्य (न अस्ति, न नास्ति), ५-स्यात् अस्ति अवक्तव्य, ६स्यात् नास्ति अवक्तव्य, और ७-स्यात् अस्ति-नास्ति अवक्तव्य । उक्त सात भगो में मौलिक अस्ति और नास्ति दो भग है । शेष चार या सात भग अस्ति-नास्ति की ही अवस्थाए विशेष हैं। अस्ति और नास्ति एक नही हो सकते हैं। क्योंकि दोनो विरोधी धर्म हैं ।
उपरोक्त सात भगो मे पहला भंग विधि के आधार पर है। इस मग मे घट के अस्तित्व का विधि-पूर्वक विवेचन किया गया है।
दूसरे भंग मे निषेध की भाषा का व्यवहार किया गया है।