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प्रथम अध्याय .
इण्डिया आफिस लण्डन के प्रधान पुस्तकालय के अध्यक्ष डॉ. थामत
_ न्याय शास्त्र मे जैन न्याय का बहुत ऊंचा स्थान है। स्याद्वाद का विषय वडा गंभीर है। वह वस्तुओ की भिन्न - भिन्न परिस्थितियो पर अच्छा प्रकाश डालता है।
श्राचार्य आनंद शंकर बापू भाई ध्रुव
स्याहाद मनुष्य को विशाल और उदार दृष्टि से पदार्थ को देखने के लिए प्रेरित करता है और विश्व के पदार्थो का किस प्रकार से अवलोकन किया जाए यह सिखाता है।
स्याहाद का सिद्धात बौद्धिक अहिसा है। वुद्धि या विचारो से भी किसी का न अनिष्ट चिन्तन करना और न किसी को बुरा कहना ही स्याद्वाद का सुखद परिणाम है ।
उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन
वास्तविकता का सच्चा और सचोट प्रतिपादन तो मात्र आपेक्षिक और तुलनात्मक ही हो सकता है। वस्तु अनेकधर्मी होने के कारण कोई, भी वात निश्चय रूप मे नही कही जा सकती। वस्तु के विविध धर्मों को अभिव्यक्त करने के लिए विधि-निषेधं सवधी शब्द का प्रयोग सात कार से होता है-जिसे जैन परिभाषा मे सप्त भगी कहते है। यही स्याद्वाद सिद्धात है।
महात्मा गांधी जिस प्रकार स्याद्वाद को मैं जानता हू, उसी प्रकार मै उसे मानता हू। मुझे अनेकान्त बड़ा प्रिय है।