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प्रश्नों के उत्तर
५८... वह व्युत्पत्ति के भेद से पर्यायवाची शब्दो के अर्थ मे भी भेद स्वीकार करता है । यह नय केवल कालादि के भेद पर ही अर्थ भेद मानना प्रर्याप्त नही समझता । इस की दृष्टि मे जहां शब्द भेद हे वहा अर्थ भेद अवश्य है ।। उदाहरण के लिए निर्ग्रन्थ, श्रमण और मुनि तीन शब्द ले । शब्द नय की दृष्टि से इन तीनो शब्दो के अर्थो मे कोई अन्तर नही है, क्योकि तीनो का लिंग एक है । परन्तु समभिरूढ़ को यह बात मान्य नही है। वह कहता है कि यदि व्युत्पत्ति भेद से अर्थ भेद नही मानेंगे तो तीनो शब्द एक हो जाएगे। अस्तु तीनों शब्दो के अर्थ मे अन्तर है, क्योकि तीनो शब्दो की व्युत्पत्ति भिन्न है। 'निर्गतौ ग्रयीर्यस्य स निर्ग्रन्थ' । 'श्रमं करोतीति श्रमण.' । 'मौन धारयतीति मुनि.'। इस तरह तीनों शब्द अपने-अपने भिन्न अर्थों को लिए हुए हैं, अत. वे एक नहीं हो सकते । द्रव्य और भाव ग्रथि- गाठ का त्याग करने वाले का अर्थ निग्रंथ है, श्रम-तपस्या करने वाला यह श्रमण शब्द का अर्थ है और मौन धारण करने वाला यह मुनि शब्द का अर्थ है । इस तरह समभिरूढ नय शब्द भेद से अर्थ मानता है।
एवंभूत नय
य . प्रस्तुत नय समभिरुढ नय से भी एक कदम आगे रखता है । समभिरूढ़ि नय व्युत्पत्ति भेद से अर्थ मानता है, परन्तु एवभूत नय कहता है कि जिस समय व्युत्पत्ति सिद्ध अर्थ घटित होता हो उस समय ही उस 8- पर्याय-शव्देषु निरुक्ति भेदेन, भिन्नमर्थ समभिरोहन समभिरुढ. ।
-प्रमाण नय तत्त्वालोक, ७, ३६ । पर्यायशब्द भेदेन भिन्नार्थस्थापिरोहणात्, नय. समभिरुढ स्यात्, पूर्ववच्चास्य निश्चय.॥
-श्लोकवार्तिक
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