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प्रश्नो के उत्तर -
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श्री काका कालेलकर
अनेकान्तवाद अथवा स्याद्वाद अहिसा धर्म का एक उज्ज्वल रूप है । इस की तात्त्विक, दार्शनिक और तार्किक चर्चा वहुत हो चुकी है। इसमे अव किसी को दिलचस्पी नहीं रही है । परन्तु सास्कृतिक क्षेत्र मे, अन्तर्राष्ट्रीय राज्य मे, गोरे, काले, पीले या गेहू वर्णी भिन्न-भिन्न वर्णो के सवध के वारे मे अगर हम समन्वयवाद को चलायेगे और स्याद्वाद को नया रूप देंगे, तो जैन संस्कृति फिर से सजीवन और तेजस्वी बनेगी। अगर इस क्षेत्र मे जैन समाज ने कुछ पुरुषार्थ करके दिखलाया तो विना कहे दुनिया भर के मनीपी जैन शास्त्रों का अध्ययन करेंगे और इस नव प्रेरणा का उद्गम कहा है उसे ढूढेगे!
महामहोपाध्याय प राम मिश्र शास्त्री .
स्याद्वाद जैन धर्म का अभेद्य किल्ला है। जिस के अन्दर प्रतिवादियो के मायावी गोले प्रवेश नही करते।
स्व. प. महावीर प्रसाद द्विवेदी
प्राचीन ढर्रे के हिन्दू धर्मावलम्बी बड़े-बडे शास्त्री तक अव भी नही जानते कि जैनियो का स्याहाद किस चिडिया का नाम है? धन्यवाद है जर्मनी, फ्रास और इग्लैड के कुछ विद्यानुरागी विशेषज्ञो को . जिन की कृपा से इस (जैन) धर्म के अनुयायियो के कीर्ति कलाप की . खोज की और भारतवर्ष के इतर जनो का ध्यान आकृप्ट किया । यदि . ये विदेशी विद्वान् जैनो के धर्म ग्रथो की आलोचना न करते, उन के प्राचीन लेखको (ग्रन्थो) की महत्ता प्रकट नही करते, तो हम लोग शायद आज भी पूर्ववत् अज्ञान के अन्धकार मे ही रहते।