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प्रश्नों के उत्तर
५०... होने से स्थूल है और निश्चय दृष्टि इन्द्रियातीत होने से सूक्ष्म है। परन्त दोनो दष्टिएं सम्यक है। - भगवती सूत्र में गौतम भगवान महावीर से पूछते हैं कि पतले गुड (फाणित) मे कितने वर्ण, गध, रस और स्पर्श होते हैं ? भगवान महावीर ने इस का उत्तर निश्चय और व्यवहार दृष्टि से दिया है। उन्होने कहा-व्यवहार दृष्टि से गुड मधुर है, मीठा है और निश्चय दृष्टि से उसमें ५ वर्ग २ गव, ५ रस और ८ सो पाए जाते हैं * । इसी तरह गव, रस से युक्त अन्य पदार्थों के संबंध मे भी दोनो दृष्टियो से उत्तर दिया है । इस तरह निश्चय के साथ उन्होंने व्यवहार को भी सत्य माना है। उन्होंने निश्चय-परमार्थ के आगे व्यवहार को झुठलाया नहो । यहो नयवाद एव स्याद्वाद दृष्टि का महत्त्व है।
.. नय के भेद स्थानाग सूत्र के सातवे स्थान मे और अनुयोग द्वार सूत्र मे सात नयो का उल्लेख मिलता है । अनुयोग द्वार सूत्र मे शब्द, समभिरूढ ओर एवंभूत नय को शब्द नय माना है । शेष चार के लिए कोई नाम निर्देश नहीं किया। पीछे के आचार्यों ने सात नयो को स्पष्टत दो भागो मे वाट दिया- १-अर्थ नय और २-शब्द नय । अन्तिम तीन नयों को आगम मे शब्द नय कहा गया है, अत. पहलो चार नयो को अर्थ नय मान लिया गया। १ नंगम,२ संग्रह,३ व्यवहार और ४ ऋजू सूत्र नय अर्य को विषय करते हैं, अतः वे अर्थ नय हैं और शब्द को अपना विषय बनाने वाले गन्द, समभिरूढ़ और एवंभूत शब्द नय हैं।
आचार्य सिद्धसेन के मतानुसार वचन के जितने प्रकार हो सकते. -- * भगवती सूत्र, २०१८, उ०६।