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प्रश्नो के उत्तर सामान्य है वह अपर सामान्य है। द्रव्य के और भी कई भेद-प्रभेद होते है। जैसे जीव द्रव्य सत्ता की दृष्टि से पर सामान्य है, तो जीवत्व की दृष्टि से अपर सामान्य है । सत्ता की दृष्टि से सभी द्रव्यों के साथ उस का भी संग्रह हो जाता है। परन्तु जीवत्व की अपेक्षा से वह अन्य सभी द्रव्यो से भिन्न है, फिर भी अपर सामान्य की दृष्टि से वह एक भी है। क्योकि सभी जीव जीवत्व की दृष्टि से समान हैं। इसी सग्रह नय को ध्यान में रख कर कहा गया कि प्रात्मा एक है ।। इस तरह द्रव्यत्व, गुणत्व आदि अपेक्षानो से जितने अपर सामान्य है तथा सत्ता की दृष्टि से जो पर सामान्य हे अथवा यो कहिए जितने भी प्रकार के सामान्य या अभेद हो सकते हैं, उन सवका ग्रहण करने वाला सग्रह नय है।
व्यवहार नय सग्रह नय ने जिस अर्थ को ग्रहण किया है, उस का विधि पूर्वक अवहरण-पृथक्करण करना व्यवहार नय है । सग्रहं नय अभेद को ग्रहण करना है और व्यवहार नय भेद को स्वीकार करता है। सग्रहनय द्वारा स्वीकृत सामान्य किस रूप मे है, इस तथ्य का विश्लेषण करने के लिए व्यवहार नय विशेष को स्वीकार करता है। ये दोनों नय द्रव्य कोही' ग्रहण करते है। परन्तु, सग्रह नय द्रव्य को अभेद रूप से स्वीकार करता है और व्यवहार नये भेद रूप से । सग्रह नये सत्ता की अपेक्षा से सभी पदार्थों को पर सामान्य रूप से ग्रहण करता है। व्यवहार नय उसी का पृथक्करण करते हुए कहता है कि सत् क्या है ? वह
। एगे आया।-स्थानाग सूत्र, १,१ . . , , $ अतो विधिपूर्वकमवहरण व्यवहार ।
-तत्त्वार्थ राजवार्तिक, १, ३३ '६ ।