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प्रथम अध्याय
उससे वह एकान्तवादी नही हो जाता। क्योकि जब वह एक अपेक्षा से एक रूपता स्वीकार करता है, तव दूसरी अपेक्षा से उस मे अन्तनिहित अनेक रूपता को भी ध्यान मे रखता है, वह उस का तिरस्कार नही करता। जैसे स्थानाग सूत्र मे 'एगे आया' एक आत्मा है कहा गया, वहा अनेक प्रात्मा के तथ्य को आखो से अोझल नही किया है। एक आत्मा है कहने का तात्पर्य इतना ही है कि आत्म द्रव्य की अपेक्षा से सभी आत्माए समान हैं, उनमे सामान्य की अपेक्षा से एक रूपता होने के कारण एक कहा गया। परन्तु इस का यह अर्थ समझना भारी भूल है कि एक यात्मा का निरूपण करते समय अनेक प्रात्मा के सिद्धात को भूला दिया गया या अनेक आत्मा की मान्यता के विरुद्ध कहा गया। । 'एगे पाया' की मान्यता मे अनेक आत्मवाद का जरा भी विरोध नहीं है। क्योकि दोनो मान्यताएँ सापेक्ष हैं, अत वे आपस मे कभी नही टकराती है। सामान्य-द्रव्य समानता को दृष्टि से एक प्रात्मा है तो विगेप- व्यक्ति की दृष्टि से अनेक प्रात्मा है । एक के उच्चारण के साथ अनेक जुडा हुआ है और अनेक के साथ एक । अत स्याद्वाद एक को मानता है वहा अनेक का तिरस्कार नही करता है, इस कारण उस पर एकान्तवादी होने का दोषारोपण करना गलत है ।
८-कुछ तार्किको का यह तर्क है कि वस्तु कथचित् यथार्थ है और कथचित् अयथार्थ है । इस मान्यता से स्याद्वाद. स्वय कथचित् सत्य और कथचित् मिथ्या हो जायगा और इस स्थिति मे स्याहाद के द्वारा तत्त्व का.वास्तविक ज्ञान हो सकेगा,,यह कैसे माना जा सकता है ? क्योकि जो प्रमाण कथचित् मिथ्या है, वह सही ज्ञान कराने मे वाधक ही होता है। ___यह हम ऊपर बता चुके है कि स्याद्वाद तत्त्व विश्लेषण करने की एक सापेक्ष दृष्टि है। अनेक धर्मयुक्त तत्त्व को उसी रूप में देखने का