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प्रथम अध्याय
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से स्वरूप और पररूप का विवेचन करना भी अप्रासगिक नही होगा । जैसे घट का द्रव्य मिट्टी है, वह मिट्टी से बनता है। अत. जिस द्रव्य से घट बना है उस द्रव्य की अपेक्षा से सत् है और शेप द्रव्य की अपेक्षा से असत् है। जिस क्षेत्र मे घट स्थित है उस क्षेत्र की अपेक्षा से वह सत् है और अन्य सभी क्षेत्रो को अपेक्षा से असत् है। जिस काल मे घट मौजूद है उस काल की अपेक्षा से सत् है,गेप काल की अपेक्षा से असत् है । भाव का तात्पर्य हैपर्याय या आकारविशेष। जिस पर्याय या आकारविशेष का घट है, उस पर्याय एव आकार की अपेक्षा से वह सत् है, शेष पर्यायो एवं आकारो को दृष्टि से असत् है । अस्तु, प्रत्येक पदार्थ स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव की अपेक्षा से सत् है और परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभाव की अपेक्षा से असत् है । इसलिए कथचित् या स्यात् शब्द का प्रयोग इस बात को सूचित करने के लिए किया जाता है, न कि सशय के कारण। स्यात् शब्द लगा देने से वस्तु को सापेक्षता का पता लग जाता है । इस के अभाव में एकान्तवाद के प्रयोग होने का भय वना रहता है । अत. अनेकान्त या स्याद्वाद को भाषा मे स्यात् या कथचित् का प्रयोग होना ज़रूरी है।
अानेप और समाधान 'कुछ, विचारक स्याद्वाद की आलोचना करते हुए उसे पागेलो का प्रलाप कहते है । यह उनके अंजान या साम्प्रदायिक अभिनिवेष का ही कारण हो सकता है। अन्यथा वे ऐसा कहने का साहस नही करते । हमे यह खेद के साथ कहना पड़ता है कि दार्शनिको ने स्याद्वाद को समझने का प्रयत्न हो नहीं किया । उन्होने जो स्याहाद की आलोचना को वह भो सुने - सुनाये विचारो पर से ही की है, ऐसा प्रतीत होता