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निरुक्त कोश ६५. अत्योग्गह (अर्थावग्रह)
अर्यते-अधिगम्यतेऽर्थ्यते वा अन्विष्यत इत्यर्थः, तस्य सामान्यरूपस्य अशेषविशेषनिरपेक्षा निर्देश्यस्य रूपादेरवग्रहणं-प्रथमपरिच्छेदनमर्थावग्रहः।
(स्थाटी प ४६) सभी विशेषणों से निरपेक्ष, सामान्यरूप से अर्थ पदार्थ का अवग्रहण करना अर्थावग्रह है। ६६. अदत्तहारि (अदत्तहारिन्) अदत्तं हरतीति अदत्तहारी।
(सूचू १ पृ १२७) जो अदत्त का हरण करता है, वह अदत्तहारी/चोर है । १७. अद्द (अर्थ) अर्थ ते—गम्यतेऽनेनेत्यईः।
(भटी पृ १४३१) जिसमें गति की जाती है, वह अर्द/आकाश है। १८. अद्धा (अध्वन्) ___ अत्ति प्राणानित्यध्वा ।
(उचूपृ १८३) जो प्राणों का भक्षण करता है, वह अध्वा/मार्ग है। ६६. अधम्मपलज्जण (अधर्मप्ररञ्जन) अधर्मप्रायेषु कर्मसु प्रकर्षेण रज्यन्त इति अधर्मप्ररक्ताः ।
(सूटी २ प ७२) जो अधार्मिक कार्यों में अत्यन्त रक्त/आसक्त हैं, वे अधर्मप्ररक्त
१००. अपुवकरण (अपूर्वकरण)
अपूर्वामपूर्वा क्रियां गच्छतीत्यपूर्वकरणम् । (भाटी प २६७) _____ जो नई-नई क्रियाओं/अवस्थाओं को प्राप्त होता है, वह अपूर्व
करण है। १०१. अप्प (आत्मन्) अतति-सन्ततं गच्छति शुद्धिसंक्लेशात्मकपरिणामान्तराणीत्यात्मा।
(उशाटी प ५२) जो विविध भावों में परिणत होती है, बह बात्मा है।
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