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निरुक्त कोश जिसके अनुसरण से कर्मों का सरण/अपनयन होता है, वह सूत्र है। सिंचति खरइ' जमत्थं तम्हा सुत्तं निरुत्तविहिणा।
(विभा १३६८) जो अर्थ का सिंचन क्षरण करता है, वह सूत्र है। सूत्र्यन्ते अनेनेति सूत्रम् ।
(स्थाटी प ४६) जिससे अर्थ सूत्रित/गुम्फित किया जाता है, वह सूत्र है। १६६६. सुत्त (सुप्त)
पासुत्तसमं सुत्तं अत्थेणाबोहियं न तं जाणे । (बृभा ३१२)
जो व्याख्या के बिना सुप्त की तरह सुप्त होता है, वह
सुप्त/सूत्र है। १६७०. सुत्त (सूक्त) सुवुत्तमिइ वा भवे सुत्तं ।
(बृभा ३१०) सुष्ठूक्तत्वाद्वा सूक्तम् ।
जो सुभाषित है, वह सूक्त/सूत्र है । सुस्थितत्वेन व्यापित्वेन च सूक्तम् । (स्थाटी प ४६)
जो व्यवस्थित और व्यापक अर्थ बोध देता है, वह सूक्त/
सूत्र है। १६७१. सुत्तफासिय (सूत्रस्पशिक) सुत्तं फुसतीति सुत्तफासिय।
(निचू २ पृ २) ___जो सूत्र का स्पर्श अनुगमन करती है, वह सूत्रस्पशिक
(व्याख्या) है। १६७२. सुदुल्लह (सुदुर्लभ) सुष्ठु दुर्लभः सुदुर्लभः।
(उचू पृ १७६) __ जिसे पाना अत्यंत कठिन है, वह सुदुर्लभ है। १. पिंच-क्षरगे। (बृटी पृ६५) २. अर्थेन अबोधितं सुप्तमिव सुप्तं प्राकृतशैल्या सुत्तं । (बृटी पृ. ६४)
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