Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 380
________________ निरक्त कोश १३१. पणिहाण (प्रणिधान) प्रणिहितिः प्रणिधानम् । (स्थाटी प ११५) एक आलम्बन पर चित्त का स्थापन प्रणिधान/एकाग्रता है। १३२. पण्णत्ति (प्रज्ञप्ति) पण्णवणं पण्णत्ती। (निचू १ पृ ३१) प्रतिपादित करना प्रज्ञप्ति है। १३३. पण्णा (प्रज्ञा) प्रज्ञानं प्रज्ञा। (नंटी पृ ५८) जो विशेष रूप से जानती है, वह प्रज्ञा है। १३४. पत्थार (प्रस्तार) पत्थरणं पत्थारो। (निचू ३ पृ २०१) विस्तृत करना प्रस्तार है। १३५. पभव (प्रभव) प्रभवनं प्रभवः। (पंटी प ३४१) प्रादुर्भूत होना प्रभव उत्पत्ति है। १३ १. पमाय (प्रमाद) प्रमदनं प्रमादः। (स्थाटी प ३४६) प्रमत्त होना प्रमाद है। १३७. पयार (प्रचार) प्रचरणं प्रचारः। (दटी प २२) प्रचरण/अत्यन्त गतिशीलता प्रचार है। १३८. परिग्गह (परिग्रह) परिग्रहणं परिग्रहः। (स्थाटी प २४) परिग्रहण स्वीकार करना परिग्रह/ मूर्छा है । १३९. परिण्णा (परिज्ञा) परिज्ञानं परिज्ञा । (स्थाटी प ३०६) सब प्रकार से जानना परिज्ञा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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