________________
निरक्त कोश
१३१. पणिहाण (प्रणिधान) प्रणिहितिः प्रणिधानम् ।
(स्थाटी प ११५) एक आलम्बन पर चित्त का स्थापन प्रणिधान/एकाग्रता है। १३२. पण्णत्ति (प्रज्ञप्ति) पण्णवणं पण्णत्ती।
(निचू १ पृ ३१) प्रतिपादित करना प्रज्ञप्ति है। १३३. पण्णा (प्रज्ञा) प्रज्ञानं प्रज्ञा।
(नंटी पृ ५८) जो विशेष रूप से जानती है, वह प्रज्ञा है। १३४. पत्थार (प्रस्तार) पत्थरणं पत्थारो।
(निचू ३ पृ २०१) विस्तृत करना प्रस्तार है। १३५. पभव (प्रभव) प्रभवनं प्रभवः।
(पंटी प ३४१) प्रादुर्भूत होना प्रभव उत्पत्ति है। १३ १. पमाय (प्रमाद) प्रमदनं प्रमादः।
(स्थाटी प ३४६) प्रमत्त होना प्रमाद है। १३७. पयार (प्रचार) प्रचरणं प्रचारः।
(दटी प २२) प्रचरण/अत्यन्त गतिशीलता प्रचार है। १३८. परिग्गह (परिग्रह) परिग्रहणं परिग्रहः।
(स्थाटी प २४) परिग्रहण स्वीकार करना परिग्रह/ मूर्छा है । १३९. परिण्णा (परिज्ञा) परिज्ञानं परिज्ञा ।
(स्थाटी प ३०६) सब प्रकार से जानना परिज्ञा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org