Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 386
________________ निरुक्त कोश . १८१. वे? (वेष्ट) वेष्टनं वेष्टः। (स्थाटी प २७६) जो लपेटा जाता है, वह वेष्ट पट्टा है। १८२. वेयणा (वेदना) वेदनं वेदना। (स्थाटी प १७) वेदन/अनुभव करना वेदना है । १८३. सइ (स्मृति) स्मरणं स्मतिः। (नंटि पृ १५२) __ जिससे स्मरण किया जाता है, वह स्मृति है। १८४. संकंति (सङक्रान्ति) संक्रमणं सङ्क्रान्तिः। (दटी प ४३) संक्रमण गमन करना संक्रान्ति है। १८५. संका (शङ्का) संकणं संका। (निचू १ १ १५) संदेह करना शंका है। १८६. संखा (संख्या) संख्यानं संख्या। (दटी प ७) गिनना संख्या है । १८७. संग (सङ्ग) षंजनं सक्तिर्वा संगः। (सूचू २ पृ ४२५) ____ आसक्त होना संग/आसक्ति है। १८८. संगह (संग्रह) संग्रहणं संग्रहः। (स्थाटी प ४७४) संचयन करना संग्रह है। १८६. संजम (संयम) संजयणं संजमो। (आचू पृ ७७) जो सम्यक् प्रकार से नियमन करता है, वह संयम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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