Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 387
________________ ३५६ १०. संजोयणा ( संयोजना ) संयोजनं संयोजना ।' ११. संणिहि (सन्निधि ) सन्निधानं सन्निधिः । संयुक्त करना संयोजना / आहार का एक दोष है । संग्रह है। १२. संति (शान्ति) शमनं शान्तिः । ( उच्च पृ १५६ ) जो सम्यक् प्रकार से निहित / संचित होती है, वह सन्निधि / शमन करना शान्ति है । १९३. संधि (सन्धि ) सन्धानं सन्धिः । १४. संवर ( संवर) संवरणं संवरः । संवरण / रुकावट करना संवर है । १५. संवास ( संवास ) संवसनं संवासः । Jain Education International जिसमें दो को एक किया जाता है, वह संधि है | साथ-साथ रहना संवास है । १६६. संसार (संसार) संसरणं संसारः । है । १७. सण्णा (संज्ञा ) निरुक्त कोश ( प्रसाटी प २१३ ) संजाणं संज्ञा । ( आटी प ७३ ) For Private & Personal Use Only ( सूच १ पृ २४१ ) ( आवहाटी १ पृ २१७ ) जिसमें संसरण / गमन - आगमन किया जाता है, वह संसार ( स्थाटी प ३०५ ) ( स्थाटी प २६५ ) सम्यक् प्रकार से जानना संज्ञा है । १. उत्कर्षतोत्पादनार्थं द्रव्यस्य द्रव्यान्तरेण मीलनं संयोजना | ( आचू पृ ६ ) ( प्रसाटी प २१३ ) www.jainelibrary.org

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