Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 393
________________ ३६२ निरुक्त कोश जिसका वर्ण पद्म के समान पीत / स्वर्णाभ है और जो पद्म की भांति निर्लिप्त है, वह पद्म है । पउमगब्भ सुकुमाला । ( आवचू २ पृ १० ) जो पद्मगर्भ की भांति सुकुमार है, वह पद्म है । ७. सुपास ( सुपार्श्व ) गभगए जं जणणी जाय सुपासा तओ सुपासजिणो । ' जब वे (सप्तम तीर्थंकर) पार्श्वभाग सु / सम / सुन्दर हो गये अतः उन्हें सुपार्श्व कहा गया । शोभनानि पावन्यस्येति सुपार्श्वः । ८. चंदप्पह ( चन्द्रप्रभ ) ( आवनि १०८३ ) गर्भस्थ हुए, तब माता पृथ्वी के ( वे पहले विषम / असुन्दर थे ), जिसके पार्श्वभाग श्रेष्ठ हैं, वह सुपार्श्व है । जणणीए चंदपिणंभि डोहलो तेण चंदाभो । ( आवनि १०८३ ) माता लक्ष्मणा को चंद्रपान का दोहद उत्पन्न हुआ था, इसलिए उसने अपने पुत्र को 'चन्द्रप्रभ' कहकर पुकारा । ( आवहाटी २ पृ 8 ) चांद जैसी प्रभा / आभा के कारण वे चन्द्रप्रभ कहलाये । चन्द्रस्येव प्रभा – ज्योत्स्ना सौम्याऽस्येति चन्द्रप्रभः । - ६. सुविहि (सुविधि ) Jain Education International ( आवहाटी २ पृ 2 ) जिसकी प्रभा / आभामण्डल चांद की भांति सोम्य है, वह चन्द्रप्रभ है । सव्वविहोसु अ कुसला गब्भगए तेण होइ सुविहि जिणो । ( आवनि १०८४ ) नौवें तीर्थंकर के गर्भ में आते ही जननी रामा ने सब विधिविधानों में अत्यधिक कुशलता अर्जित की, इसलिए उनका नामकरण सुविधि हुआ । १. सव्र्व्वेसि सोभणा पासा तित्थकर मातृणं च विसेसो माताए गुठिवणीए सोभणा पासा जातत्ति, पढमं विकुक्षिया आसी । (अवचू २१० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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