Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 395
________________ ३६४ निरक्त कोश उन के गर्भस्थ होने पर वासव/वैश्रमण ने पुनः पुनः राजकोश को वसु रत्नों से भरा, अत: उनका नाम वासुपूज्य रखा गया। वसूनां पूज्यो वसुपूज्यः, वसवो-देवाः। (आवहाटी २ पृ९) जो वसुदेवों का पूज्य है, वह वासुपूज्य है। १३. विमल (विमल) विमलतणुबुद्धि जणणी गब्भगए तेण होइ विमलजिणो। (आवनि १०८६) जिनके गर्भ में आने पर माता श्यामा की बुद्धि और शरीर अत्यंत विमल/निर्मल हो गये, वे 'विमल' नाम से अभिहित हुए। विगतमलो विमलः, विमलानि वा ज्ञानादीनि यस्य स विमलः । (आवहाटी २ पृ १०) जिसके ज्ञान आदि विमल/निर्मल हैं, वह विमल है । २४. अणंत (अनन्त) रयणविचित्तमणंतं दामं सुमिणे तओऽणंतो। (आवनि १०८६) माता सुयशा ने स्वप्न में रत्नखचित अनंत/विशाल माला देखीं, अतः पुत्र का नाम रखा अनंत । अनन्तकाशजयादनन्तः, अनन्तानि वा ज्ञानादीन्यस्येति अनन्तः । (आवहाटी २ पृ १०) जो अनन्त कर्माशों को जीतता है, उनका क्षय करता है, वह अनन्त है। जो अनन्त चतुष्टयी से संपन्न है, वह अनंत है । १५. धम्म (धर्म) गब्भगए जं जणणी जाय सुधम्मत्ति तेण धम्मजिणो। (आवनि १०८७) अम्मापितरो सावगधम्मे भुज्जो चुक्के खलंति, उववण्णे दढव्वताणि । (आवचू २ पृ ११) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402