Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 399
________________ ३६८ पश्यति सर्वभावानिति पार्श्वः पश्यक् इति चान्ये । सव्वेऽवि भावाणं जाणगा पासगा यत्ति पासा । है । २४. वद्धमाण ( वर्द्धमान ) ( आवहाटी २११ ) जो सब भावों की पश्यना / परिज्ञान करता है, वह पार्श्व निरुक्त कोश वढइ नायकुलंति अ तेण वद्धमाणुत्ति । ( आवनि १०९१ ) भगवान् जब त्रिशला के गर्भ में आये, तब ज्ञातकुल में धनसंपदा की अतिशय वृद्धि हुई, अत: उनका नाम वर्धमान / महावीर रखा गया । ( २४ वें तीर्थंकर) । उत्पत्तेरारभ्य ज्ञानादिभिर्वर्धत इति वर्धमानः । तत्थ सव्वेदि णाणादिगुणेह वढइति । ( आवहाटी २ पृ ११ ) Jain Education International जन्म से लेकर जिसके ज्ञान आदि बढ़ते रहते हैं, वह वर्धमान है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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