Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 391
________________ ३६० निरुक्त कोश १. उसभ (वृषभ/ऋषभ) ऊरूसु उसमलंछणं उसभं सुमिणमि तेण उसभ जिणो।' (आवनि १०८०) दोनों ऊरूओ/जंघाओ पर वृषभ का चिह्न होने के कारण वे (प्रथम तीर्थंकर) वृषभ/ऋषभ कहलाए। माता मरुदेवी ने सर्वप्रथम (चौदह स्वप्नों में) वृषभ/बैल का स्वप्न देखा, इसलिए उनका नामकरण वृषभ/ऋषभ हुआ। वृष-उद्वहने, उव्वढं तेन भगवता जगत्संसारमग्गं अतुलं नाणदंसणचरित्तं वा तेन ऋषभ इति । (आवचू २ पृ९) समग्रसंयमभारोद्वहनाद् वृषभः। (आवहाटी २ पृ ८) जो संसार का उद्वहन/उद्धार करता है, वह वृषभ है। जो अतुल ज्ञान, दर्शन और चारित्र को धारण करता है, वह वृषभ है। २. अजिम (अजित) अक्खेसु जेण अजिआ जणणी अजिओ जिणो तम्हा । (आवनि १०८०) जब वे गर्भ में आए, तब उनकी माता विजया द्यूतक्रीड़ा में विजित हुई, इसलिए उनका नाम अजित रखा गया। अजितो परीसहोवसग्गेहि। (मावचू २ पृ. ६) परीषहोपसर्गादिभिर्न जितोऽजितः। (आवहाटी २ पृ८) जो परीषह और उपसर्गों से अजेय है, वह अजित है। ३. संभव (सम्भव) अभिसंभूआ सासत्ति संभवो तेण वुच्चई भयवं । (आवनि १०८१) जब वे (तृतीय तीर्थकर) गर्भ में थे, तब उनके प्रभाव से अत्यधिक शस्य/धान्य संभूत/उत्पन्न हुआ, अतः उनका नाम संभव रखा गया। १. उसमोत्ति वा वसभोत्ति वा एगठें। (आवहाटी २ पृ ८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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