Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 390
________________ परिशिष्ट २ (तीर्थंकर-अभिधान निरुक्त) तीर्थंकर स्वतंत्र धर्म-परम्परा के प्रवर्तक होते हैं, फिर भी उनकी भाषा में धर्म का मौलिक रूप एक होता है। इस कालचक्र में ऋषभ पहले तीर्थंकर और महावीर चौबीसवें तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थकरों के नामकरण का भी एक इतिहास है, जिसे नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने मूलरूप में सुरक्षित रखा है। उनके अन्वर्थ नामों के निरुक्त इस परिशिष्ट में उपलब्ध हैं। चूर्णिकार और टीकाकारों ने इस अन्वर्थ नाम निरुक्तों की शृखला को और अधिक विकसित रूप में प्रस्तुत किया है। प्रथम कोटि में उन निरुक्तों को रखा गया है जो नामकरण की मौलिकता एवं विशिष्टता के संवाहक हैं। दूसरी श्रेणी में वे निरुक्त हैं, जो सामान्य रूप से सभी तीर्थंकरों के लिए व्यवहृत हो सकते हैं। इहाहतां नामानि अन्वर्थमधिकृत्य सामान्यलक्षणतो विशेषलक्षणतश्च वाच्यानि । (आवहाटी २ पृ ८) एते सामण्णं, विसेसो ..... । (आव २ पृ.६) विशेष बात यह है कि प्रायः ये सभी नाम मातृ इच्छा से प्रभावित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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