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निरुक्त कोश
१. उसभ (वृषभ/ऋषभ) ऊरूसु उसमलंछणं उसभं सुमिणमि तेण उसभ जिणो।'
(आवनि १०८०) दोनों ऊरूओ/जंघाओ पर वृषभ का चिह्न होने के कारण वे (प्रथम तीर्थंकर) वृषभ/ऋषभ कहलाए।
माता मरुदेवी ने सर्वप्रथम (चौदह स्वप्नों में) वृषभ/बैल का स्वप्न देखा, इसलिए उनका नामकरण वृषभ/ऋषभ हुआ। वृष-उद्वहने, उव्वढं तेन भगवता जगत्संसारमग्गं अतुलं नाणदंसणचरित्तं वा तेन ऋषभ इति ।
(आवचू २ पृ९) समग्रसंयमभारोद्वहनाद् वृषभः। (आवहाटी २ पृ ८)
जो संसार का उद्वहन/उद्धार करता है, वह वृषभ है।
जो अतुल ज्ञान, दर्शन और चारित्र को धारण करता है, वह वृषभ है। २. अजिम (अजित) अक्खेसु जेण अजिआ जणणी अजिओ जिणो तम्हा ।
(आवनि १०८०) जब वे गर्भ में आए, तब उनकी माता विजया द्यूतक्रीड़ा में विजित हुई, इसलिए उनका नाम अजित रखा गया। अजितो परीसहोवसग्गेहि।
(मावचू २ पृ. ६) परीषहोपसर्गादिभिर्न जितोऽजितः। (आवहाटी २ पृ८)
जो परीषह और उपसर्गों से अजेय है, वह अजित है। ३. संभव (सम्भव) अभिसंभूआ सासत्ति संभवो तेण वुच्चई भयवं । (आवनि १०८१)
जब वे (तृतीय तीर्थकर) गर्भ में थे, तब उनके प्रभाव से अत्यधिक शस्य/धान्य संभूत/उत्पन्न हुआ, अतः उनका नाम संभव
रखा गया। १. उसमोत्ति वा वसभोत्ति वा एगठें। (आवहाटी २ पृ ८)
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