Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 385
________________ ३५४ १७३. विजय ( विनय ) विनयणं विणओ । १७४. विष्णत्ति (विज्ञप्ति ) विज्ञानं विज्ञप्तिः । जो कर्मों का विनयन / नाश करता है, वह विनय है । विशिष्ट ज्ञान विज्ञप्ति है । १७५. विभत्ति ( विभक्ति) विभयणं विभत्ती । विभाग करना विभक्ति है । १७६. विभूसा ( विभूषा ) विभूसणं विभूसा । सज्जित होना विभूषा है । १७७. विराग ( विराग ) विरमणं विरागो । भोगों से विरत होना विराग है । १७८. विवेग (विवेक) विवेजणं विवेगो । Jain Education International १७६. विहार (विहार) विहरणं विहारो । जिसमें विहरण होता है, वह विहार है । १५०. बुद्धि ( वृद्धि ) जो विवेचन / पृथक् करता है, वह विवेक है । वर्द्धनं वृद्धिः । निरुक्त कोश ( निचू १ पृ १८ ) For Private & Personal Use Only ( नंटी पृ ४३ ) (नंचू पृ ५८ ) ( अचू पृ १५७ ) ( आचू पृ १२० ) ( आचू पृ १७६) ( नंचू पृ ५८ ) ( अनुद्वाचू पृ १० ) बढ़ती है / विस्तृत होती है, वह वृद्धि / व्याख्या है । www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402