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१७३. विजय ( विनय )
विनयणं विणओ ।
१७४. विष्णत्ति (विज्ञप्ति )
विज्ञानं विज्ञप्तिः ।
जो कर्मों का विनयन / नाश करता है, वह विनय है ।
विशिष्ट ज्ञान विज्ञप्ति है ।
१७५. विभत्ति ( विभक्ति) विभयणं विभत्ती ।
विभाग करना विभक्ति है ।
१७६. विभूसा ( विभूषा )
विभूसणं विभूसा ।
सज्जित होना विभूषा है ।
१७७. विराग ( विराग )
विरमणं विरागो ।
भोगों से विरत होना विराग है ।
१७८. विवेग (विवेक)
विवेजणं विवेगो ।
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१७६. विहार (विहार)
विहरणं विहारो ।
जिसमें विहरण होता है, वह विहार है ।
१५०. बुद्धि ( वृद्धि )
जो विवेचन / पृथक् करता है, वह विवेक है ।
वर्द्धनं वृद्धिः ।
निरुक्त कोश
( निचू १ पृ १८ )
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( नंटी पृ ४३ )
(नंचू पृ ५८ )
( अचू पृ १५७ )
( आचू पृ १२० )
( आचू पृ १७६)
( नंचू पृ ५८ )
( अनुद्वाचू पृ १० )
बढ़ती है / विस्तृत होती है, वह वृद्धि / व्याख्या है ।
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