Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 384
________________ ३५३ निरुक्त कोश १६५. राअ (राग) रंजणं राओ। (विभा २६६१) जो रंजित/आसक्त करता है, वह राग है । १६६. रोहग (रोधक) रोधनं रोधकः। (बृटी पृ २०२) जो रुकावट डालता है, वह रोधक है। १६७. लाह (लाभ) लम्भनं लाभः। (प्रसाटी प १९४) जो प्राप्त होता है, वह लाभ है। १६८. ववहार (व्यवहार) व्यवहरणं व्यवहारः। (नंटी पृ १७३) जो व्यवहृत होता है, वह व्यवहार है। १६६. वाव (वाद) वदनं वादः। (नंचू पृ ४७) जिसका कथन किया जाता है, वह वाद है। १७०. वास (वर्ष) वर्षणं वर्षः। (बृटी पृ ४५५) बरसना वर्ष/वृष्टि है। १७१. विउस्सग्ग (व्युत्सर्ग) व्युत्सर्जनं व्युत्सर्गः। (पंटी प ४०७) व्युत्सर्जन/छोड़ना व्युत्सर्ग है। १७२. विक्कय (विक्रय) विकीणणं विक्कयो। (आचू पृ ७८) बेचना विक्रय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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