Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 383
________________ ३५२ निरुक्त कोश १५६. मइ (मति) मननं मतिः। (आटी प १२) जो मनन करती है, वह मति है। १५७. मच्चु (मृत्यु) मरणं मृत्युः। (उचू पृ २१८) प्राणों का त्याग मृत्यु है । १५८. मण (मनस्) मननं मनः । (सूचू २ पृ ३६८) ___ जो मनन में प्रवृत्त होता है, वह मन है। १५६. मणोम (मनोम) मनसो मतः मनोमः। (सूचू २ पृ ३२६) जो मन को प्रिय मान्य है, वह मनोम/मनोज्ञ है । १६०. मुंड (मुण्ड) मुण्डनं मुण्डः। (स्थाटी प ३२२) __ केशों तथा कषाय का मुण्डन/अपनयन करना मुंड है। १६१. मुच्छा (मूर्छा) मूर्च्छन मूर्छा। (जीटी प १९३) मूच्छित/मूढ़ होना मूर्छा है। १६२. मोक्ख (मोक्ष) __ मोचनं मोक्षः। (स्थाटी प १५) मुक्त होना मोक्ष है। १६३. याग (याग) यजनं यागः। (आटी प ४२). जिसमें यजन देवपूजा की जाती है, वह याग/यज्ञ है। १६४. रइ (रति) रमणं रतिः। (प्रसाटी प १९३) रमण/आनन्दानुभव रति है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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