Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 353
________________ ३२२ १७०२. सुहसायय ( सुखस्वादक ) सुहं सायति - पत्थयतित्ति सुहसाययो । १७०३. सुहसील ( सुखशील ) सुहं सोलेति- अणुट्ठेति सुहसीले । जो सुविधावादी है, वह सुखशील है । जो सुख की प्रार्थना करता है, वह सुखस्वादक है । १७०४. सुहावह ( सुखावह ) सूयणीया सुहुमा । सुहमावहतीति सुहावहं । ( दजिचू पृ ३२९ ) जो सुख का आवहन करता है, वह सुखावह / सुखकर है । १७०५. सुहुम (सूक्ष्म) १७०६. सुहय ( सुहूत) निरुक्त कोश ( दजिचू पृ १६३ ) ( आचू पृ २६५ ) जिनका प्रयत्नपूर्वक सूचन किया जाता है, वे सूक्ष्म हैं । सुष्ठु हुतं क्षिप्तं घृतादीनि गम्यते यस्मिन् स सुहूतः । १७०७. सूर ( शूर) Jain Education International ( दअचू पृ ६ ) ( स्थाटी प ४४४ ) जिसमें अच्छी तरह से घृत आदि डाले गये हों, वह सुहूत (अग्नि) है । १. सूच्यते सूक्ष्मम् । (अचि पृ ३१९ ) २. (क) शवति वीयं प्राप्नोतीति शूरः । (ख) 'शूर' का अन्य निरुक्त शूरयति विक्रामति इति शूरः । ( शब्द ५ पृ १२६ ) जो वीरता दिखाता है, वह शूर है । शपति शप्यते वा शूरः । ( सूचू १ टी पृ ७६ ) जो आह्वान करते हुए आगे बढ़ता है, वह शूर / योद्धा है । शवत्यसौ युद्धं मुंचति वा तमिति शूरः パ ( उच्च् पृ ५६ ) जो युद्ध में शक्ति को प्राप्त होता है, वह शूर है । जो युद्ध में शक्ति का प्रयोग करता है, वह शूर है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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