Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 367
________________ ३३६ निरक्त कोश २४. आगम (आगम) आगमनमागमः। (नंटी पृ ६६) जानना आगम है। २५. आगाल (आगाल) आगालनमागालः। (आटी प ५) आगालन/सम प्रदेशों में शुद्ध आत्मा में अवस्थान करना आगाल ज्ञान आदि आचार है। २६. आजाइ (आजाति) आजननमाजातिः। (स्थाटी प ४८६) प्रादुर्भाव होना आजाति/उत्पत्ति है। २७. आणंद (आनन्द) आणंदणमाणंदो। (दअचू पृ २७१) जो आनन्दित करता है, वह आनन्द है। २८. आपुच्छा (आपृच्छा) आपृच्छनमापृच्छा। (प्रसाटी प २२२) जिज्ञासा करना आपृच्छा है। २६. आयंक (आतङ्क) आतङ्कनं आतङ्कः। (आटी प ७५) जो कष्टप्रद है, वह आतंक है । ३०. आयव (आतप) आतपनमातपः। (प्राक १ टी पृ ३३) जो तप्त करता है, वह आतप है। ३१. आयार (आचार) आयरणं आयारो। (नंचू पृ ६१) जिसका आचरण किया जाता है, वह आचार है। ३२. आरंभ (आरम्भ) आरंभणं आरंभो। (आचू पृ २२६) जो पचन-पाचन की प्रवृत्ति है, वह आरंभ/हिंसा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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