Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 375
________________ ३४४ निरुक्त कोश १०. जोग (योग) योजनं योगः। (नक ४ टी पृ ११३) जो (आत्मा को कर्म से) योजित करता है, वह योग/ चंचलता है। ६१. ठवणा (स्थापना) स्थापनं स्थापना। (नटी पृ ५१) स्थापित करना स्थापना/धारणा है । ६२. ठिति (स्थिति) स्थानं स्थितिः। (स्थाटी प ३२१) ठहरना स्थिति है। ९३. गंदि (नन्दि) नन्दनं नन्दिः । (स्थाटी प २११) जो आनन्दित करता है, वह नन्दि/आनन्द है । १४. णमुक्कार (नमस्कार) नमस्करणं नमस्कारः। (बृचू प १) नमन करना नमस्कार है। ६५. णय (नय) नयनं नयः। (स्थाटी प ४) जिससे/जिसमें ले जाया जाता है, वह नय है । ६६. णिक्खम्म (निष्क्रम) निष्क्रमणं निष्क्रमः। (स्थाटी प ४६७) घर से निकलना निष्क्रम/प्रव्रज्या है । १७. णिक्खेव (निक्षेप) णिक्खिवणं णिक्खेवो। (अनुद्वाचू पृ १९) न्यास करना निक्षेप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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