Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 377
________________ ३४६ निरक्त काश १०६. णिव्वेय (निर्वेद) निवेदनं निर्वेदः। (उचू पृ९७) निविण्ण/विरक्त होना निर्वेद है । १०७. णिस? (निसृष्ट) निसर्जनं निसृष्टम् । (स्थाटी प ३६) ____ निसर्जन/छोड़ना निसृष्ट है । १०८. णिसिज्जा (निषद्या) निसीयणं निसिज्जा। (आचू पृ ३१७) ___ जहां बैठा जाता है, वह निषद्या/स्वाध्याय भूमि है। १०६. णिसेह (निषेध) निषेधनं निषेधः। (प्रसाटी प १९३) निषेध करना निषेध है। ११०. तक्क (तर्क) तर्कणं तर्कः। (स्थाटी प १६) कैसे ? क्यों ? इस रूप में तर्कणा करना तर्क है। १११. तहक्कार (तथाकार) तथाकरणं तथाकारः। (स्थाटी प ४७८) आज्ञा के अनुरूप करना तथाकार है। ११२. ताड (ताड) तलणं ताडः। (सूचू २ पृ ३६०) ताडित करना ताडन है। ११३. तिगिच्छा (चिकित्सा) चिकित्सनं चिकित्सा। (प्रसाटी प १४७) रोग का प्रतिकार करना चिकित्सा है। ११४. थंभ (स्तम्भ) थंभणं थंभो। (दअचू पृ २०६) जो जड़ीभूत करता है, वह स्तम्भ/मान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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