Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 370
________________ मिरक्त कोश ३३६ विवक्षित अर्थ में मन का उपयोजन/नियोजन करना उपयोग है। ५०. उवक्कम (उपक्रम) उपक्रमणमुपक्रमः। (स्थाटी प ३) उपक्रमण करना/समीप जाना उपक्रम है । ५१. उवयार (उपचार) उवचरणं उवचारः। (निचू १ पृ २६) जो उपचरित होता है, वह उपचार है । ५२. उवरम (उपरम) उवरमणं उवरमो। (आचू पृ १०८) किसी पदार्थ या वृत्ति से उपरमण करना/दूर होना उपरम ५३. उवलद्धि (उपलब्धि) उपलम्भनमुपलब्धिः । (बृटी पृ २५) जो प्राप्त होती है, वह उपलब्धि है। ५४. उववात (उपपात) उववज्जणमुववातो। (नंचू पृ ६९) उपपतन जन्म उपपात है। ५५. उवसंपय (उपसम्पत्) उपसम्पादनमुपसम्पत् । (प्रसाटी प २२२) निकटता से आचरण करना उपसंपत् है । ५६. उवसम (उपशम) उवसमणं उवसमो। (आचू पृ २२६) उपशांत होना उपशम है। ५७. उवालंभ (उपालम्भ) उपालम्भनं उपालम्भः। (स्थाटी प २४६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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