Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 371
________________ ३४० 1 निरुक्त कोश अनौचित्य का निकटता से भान कराना उपालम्भ / उलाहना ५८. उस्सय (उच्छ्रय) उच्छ्रयनमुच्छ्रयः । (सूच १ पृ १७७ ) जो मन में उच्छ्रयन / बड़प्पन का भाव पैदा करता है, वह उच्छ्रय/मान है । ५६. ऊसास (उच्छ्वास ) उच्छ्वसनमुच्छ्वासः । श्वास लेना उच्छ्वास है । ६०. एसणा ( एषणा ) एषणं एषणा । खोजना एषणा है । ६१. ओगाह ( अवगाह ) अवगाहणमवगाहः । ६२. ओहि (अवधि) अवधानमवधिः । Jain Education International भीतर तक अवगाहन करना / पैठना अवगाह है । है । ६३. कअ (क्रय) किणणं कओ । ( अनुद्वामटी प २ ) अवधान / समाधान देता है, वह अवधि ( ज्ञान ) है | जो अवधान / एकाग्रता से उत्पन्न होता है, वह अवधि ज्ञान खरीदना क्रय है । ६४. कप्प (कल्प ) कल्पनं कल्पः । (प्राक १ टी पृ ३३) ( पंटी प ३५१ ) ( निचू १ पृ २७ ) For Private & Personal Use Only जो विधि / करणीय है, वह कल्प / आचार है । ( आचू पृ७८ ) ( नंटी पू ७० ) www.jainelibrary.org

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