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निरक्त कोश
१७२५. सोयकारि (श्रोतस्कारिन्)
श्रोतसि करोतीति श्रोतःकारी।
___ जो कानों से सुनता है, वह श्रोतस्कारी है। श्रोत्रेण गृहीत्वा हृदि करोतीति श्रोतःकारी।
जो कानों से सुनकर हृदय में धारण करता है, वह श्रोतस्कारी है। श्रुत्वा वा करोतीति श्रोतःकारी। (सूचू १ पृ २३२)
जो सुनकर करता है, वह श्रोतस्कारी है । १७२६. सोयरिय (शौकरिक)
शूकरेण सन्निहितेन शूकरवधार्थं चरन्ति शौकरिकाः।
जो अपने पास वाले शूकर से अन्य सूअर का वध करता है, वह शौकरिक है। शूकरान् वा घ्नन्तीति शौकरिकाः। (अनुद्वामटी प ११९)
जो सूअरों का वध करता है, वह शौकरिक है । १७२७. सोल्ल (शूल्य) शूले पच्यन्ते इति शूल्यानि ।
(उपाटी पृ १४७) जो मांस खंड शूल में पिरोकर पकाए जाते है, वे शूल्य/
मांस खंड हैं। १७२८. सोवाग (श्वपाक) साणं पचंतीति सोवागा।
(आचू पृ ३२३) जो कुत्तों को पकाते हैं, वे श्वपाक चांडाल हैं। १७२६. सोहि (शोधि) सोधयति कम्मं तेण सोही।
(दश्रुचू प २६) जो कर्मों का शोधन करती है, वह शोधि है। १७३०. सोहि (शोधिन्) शोधयत्यात्मपराविति शोधी।
(ज्ञाटी प ७७)
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