Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 360
________________ " निरुक्त कोश १७४३. हसिर (हसितृ ) हसनशीलो हसिरो । जिसे हंसने की आदत है, वह हसिता है । - १७४४. हायणी (हायनी) हायत्यस्यां बाहुबलं चक्षुर्वा हायणी । है | छट्टी उ हायणी नाम जं नरो दसमस्सिओ । विरज्जइ य कामेसु इंदिएसु य हायई । ' (दश्रुचू प ३ ) जिसमें बाहुबल और चक्षुबल क्षीण होते हैं, वह हायनी दशा - १७४५. हास (हास ) ( दटी प ८ ) जो पुरुष की इन्द्रियों को अर्थग्रहण में हीन बनाती है, वह हायनी (छठी दशा ) है | हस्यतेऽनेनेति हासः । : १७४६. हिंस ( हिंस्र ) हिंसयतीति त्रिः । ( दटी प ७८ ) जिसके द्वारा हंसा जाता है, वह हास / हास्य मोहनीय कर्म है । जो हिंसा करता है, वह हिंस्र है । १७४७. हिंसपेहि (हिंसाप्रेक्षिन् ) Jain Education International हिंसां - वधं साध्वादेः प्रेक्षते - गवेषयतीति हिंसाप्रेक्षी । १७४८. हिंसय (हिंसक ) ( उचू पृ १९७ ) हिनस्तीति हिंसकः । ३२६ जो मारने की टोह देखता है, वह हिंसाप्रेक्षी है । जो हिंसा करता है, वह हिंसक है । ( उच्५ १६० ) For Private & Personal Use Only ( स्थाटी प २६० ) १. हापयति पुरुषमिन्द्रियेष्विति -- इन्द्रियाणि मनाक् स्वार्थग्रहणापटूनि करोतीति हापयति प्राकृतत्वेन च हायणित्ति । ( स्थाटी प ४७ ) ( आटी प १६५ ) www.jainelibrary.org

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