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निरुक्त कोश १६६०. सुरम्म (सुरम्य)
सुष्ठु मनांसि रमयतीति सुरम्यः । (राटी पृ २३)
__जो मन को भलीभांति रमण कराता है, वह सुरम्य है। १६६१. सुरहि (सुरभि) सौमुख्यकृत् सुरभिः।
(अनुद्वाहाटी पृ ६०) जो मुख को सु/प्रसन्न करती है, वह सुरभि है । सुष्ठु रभते सुरभिः।
(प्राक १ टी पृ ४८) जिसका सम्यक् आसेवन किया जाता है, वह सुरभि है ।
जिसकी अधिक कामना की जाती है, वह सुरभि है । १६६२. सुवण्ण (सुवर्ण) शोभनवर्णं सुवर्णम् ।
(उचू पृ १८५) जिसका वर्ण श्रेष्ठ है, वह सुवर्ण/स्वर्ण है। १६६३. सुविण (स्वप्न) सुप्यते स्वप्नमात्रं वा स्वप्नम् ।
(उचू पृ १७५) जो सोये सोये लिया जाता है, वह स्वप्न है ।
जिसमें स्वप्नमात्र का वर्णन है, वह स्वप्न (शास्त्र) है। १६६४. सुविसुद्ध (सुविशुद्ध) .
मण-दयण-कायजोगेहि सुठ्ठ विसुद्धो सुविसुद्धो। (दअचू पृ २२८)
जो मन, वचन और काया से विशुद्ध है, वह सुविशुद्ध है । १६६५. सुसंभिय (सुसंभृत) सुष्ठु---अतिशयेन संभृताः-संस्कृताः सुसंभृताः ।
(उशाटी प ४०५) जो अत्यधिक रूप में संभृत/संस्कृत हैं, वे सुसंभृत हैं। १६६६. सुसमा (सुषमा) सुष्ठु समा सुषमा।
(स्थाटी प २५) १. रभ्---Embrace, to long for (आप्टे पृ १३२६)
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