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निरुक्त कोश
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१७०८. सेउकर (सेतुकर)
सेतुः मार्गस्तं करोतीति सेतुकरः । (राटी पृ २५)
जो सेतु! मार्ग का निर्माण करता है, वह सेतुकर मार्गदर्शक
१७०६. सेज्जंस (श्रेयांस)
श्रेयः श्रेयसि तस्मिन्निति श्रेयांसः । (आचू पृ ३७५)
जिसमें श्रेय कल्याण निहित है, वह श्रेयांस है । १७१०. सेज्जा (शय्या) शेरते आस्विति शय्याः।
(प्रसाटी प २३७) जिनमें शयन किया जाता है, वे शय्या हैं । १७११. सेज्जातर (शय्यातर)
गोवाइऊण वसहि तत्थ वि ते यावि रक्खि तरइ ।' तद्दाणेण भवोघं च तरति सेज्जातरो तम्हा।। (बभा ३५२३)
___ जो शय्या वसति का तरण संरक्षण करने में समर्थ है, वह शय्यातर है।
जो शय्या/उपाश्रय में स्थित साधुओं का रक्षण करता है, वह शय्यातर है।
___ जो शय्या वसति के दान से संसार को तरता है, वह
शय्यातर है। १७१२. सेज्जादाउ (शय्यादातृ) सेज्ज ददाति सेज्जादाता ।
(निचू २ प १३१) जो शय्या 'सति देता है, वह शय्यादाता है । १७१३. सेज्जाधर (शय्याधर)
अम्हा धारण विज्पडमणि छज्जलेपनाईहि।
जं वा तीए धरेति नगा आयं धरो सम्हा। (बृभा ३५२४) १. 'तत्र' तस्यां --शय्यायां स्थितान् साधन स्तेनादिप्रसपायेभ्यो रक्षितुं
तरति शय्यातरः । (बृटी पृ९८१)
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